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पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी
मनुष्य कर्त्तव्य का उपदेश।
पदार्थान्वयभाषाः - (ते) वे सब (त्वा) तेरी (रक्षन्तु) रक्षा करें, (ते) वे सब (त्वा) तेरी (गोपायन्तु) चौकसी करें, (तेभ्यः) उनके लिये (नमः) नमस्कार है, (तेभ्यः) उनके लिये (स्वाहा) सुन्दर वाणी है ॥१४॥
भावार्थभाषाः - मनुष्य परमेश्वर की महिमा से अग्नि, पृथिवी, आदि पदार्थों से [मन्त्र ११, १३] यथावत् उपकार लेकर रक्षा में प्रवृत्त रहें ॥१४॥
टिप्पणी: १४−(ते)-म० ११-१३। अग्निपृथिव्यादिपदार्थाः (रक्षन्तु) पालयन्तु (त्वा) त्वाम् (गोपायन्तु) सर्वतो रक्षन्तु (नमः) सत्कारः (स्वाहा) अ० २।१६।१। सुवाणी। स्तुतिः। अन्यत्सुगमम् ॥