सूर्य, चन्द्रमा के लक्षणों का उपदेश।
पदार्थान्वयभाषाः - (एतौ) यह दोनों [सूर्य, चन्द्रमा] (पूर्वापरम्) आगे-पीछे (मायया) बुद्धि से [ईश्वरनियम से] (चरतः) विचरते हैं, (क्रीडन्तौ) खेलते हुए (शिशू) [माता-पिता के दुःख हटानेवाले] दो बालक [जैसे] (अर्णवम्) अन्तरिक्ष में (परि) चारों ओर (यातः) चलते हैं। (अन्यः) एक [सूर्य] (विश्वा) सब (भुवना) भुवनों को (विचष्टे) देखता है, (अन्यः) दूसरा तू [चन्द्रमा] (ऋतून्) ऋतुओं को [अपनी गति से] (विदधत्) बनाता हुआ [शुक्ल पक्ष में] (नवः) नवीन (जायसे) प्रगट होता है ॥१॥
भावार्थभाषाः - सूर्य और चन्द्रमा ईश्वरनियम से आकाश में घूमते हैं और सूर्य, चन्द्र आदि लोकों को प्रकाश पहुँचाता है। चन्द्रमा शुक्लपक्ष के आरम्भ से एक-एक कला बढ़कर वसन्त आदि ऋतुओं को बनाता है ॥१॥ मन्त्र १, २ कुछ भेद से ऋग्वेद में हैं-म० १०।८५।१८, १९ ॥