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उप॑हूता इ॒ह गाव॒ उप॑हूता अजा॒वयः॑। अथो॒ अन्न॑स्य की॒लाल॒ उप॑हूतो गृ॒हेषु॑ नः ॥

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पद पाठ

उपऽहूता: । इह । गाव: । उपऽहूता: । अजऽअवय: । अथो इति । अन्नस्य । कीलाल: । उपऽहूत: । गृहेषु । न: ॥६२.५॥

अथर्ववेद » काण्ड:7» सूक्त:60» पर्यायः:0» मन्त्र:5


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पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी

कुवचन के त्याग का उपदेश।

पदार्थान्वयभाषाः - (इह) यहाँ पर (नः) हमारे (गृहेषु) घरों में (गावः) गौएँ (उपहूताः) आदर से बुलायी गयीं, और (अजावयः) भेड़-बकरी (उपहूताः) पास में बुलायी गयीं होवें। (अथो) और भी (अन्नस्य) अन्न का (कीलालः) रसीला पदार्थ (उपहूतः) पास लाया गया हो ॥५॥
भावार्थभाषाः - मनुष्य दूधवाले गौ आदि पशु और भोजन के उत्तम पदार्थ संग्रह करके परस्पर रक्षा करें ॥५॥ यह मन्त्र यजुर्वेद में है−३।४३। और संस्कारविधि गृहाश्रमप्रकरण में भी आया है ॥
टिप्पणी: ५−(उपहूताः) सत्कारेण समीपे वा प्राप्ताः (इह) गृहाश्रमे (गावः) गवादिदुग्धपशवः (उपहूताः) (अजावयः) अजाश्च अवयश्च (अथो) अपि (अन्नस्य) भोजनस्य (कीलालः) अ० ४।११।१०। सारपदार्थः (उपहूतः) (गृहेषु) गेहेषु (नः) अस्माकम् ॥