वांछित मन्त्र चुनें

नम॑स्ते रु॒द्रास्य॑ते॒ नमः॒ प्रति॑हितायै। नमो॑ विसृ॒ज्यमा॑नायै॒ नमो॒ निप॑तितायै ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

नम: । ते । रुद्र । अस्यते । नम: । प्रतिऽहितायै । नम: । विऽसृज्यमानायै । नम: । निऽपतितायै ॥९०.३॥

अथर्ववेद » काण्ड:6» सूक्त:90» पर्यायः:0» मन्त्र:3


बार पढ़ा गया

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी

कर्म के फल का उपदेश।

पदार्थान्वयभाषाः - (रुद्र) हे पापियों के रुलानेवाले परमेश्वर ! (अस्यते) [बरछी वा बाण] छोड़नेवाले (ते) तुझको (नमः) नमस्कार है, (प्रतिहितायै) तानी हुई [बरछी] को (नमः) नमस्कार है। (विसृज्यमानायै) छुटती हुई को (नमः) नमस्कार है, और (निपतितायै) लक्ष्य पर पड़ी हुई [बरछी] को (नमः) नमस्कार है ॥३॥
भावार्थभाषाः - मनुष्य परमेश्वर की विविध दण्डव्यवस्था को विचार कर उसकी उपासना करके पापों से बचें ॥३॥
टिप्पणी: ३−(नमः) सत्कारः (ते) तुभ्यम् (रुद्र) हे पापिनां रोदयितः परमेश्वर (अस्यते) इषुं क्षिपते (प्रतिहितायै) हननाय संहितायै त्वदीयेषवे (विसृज्यमानायै) प्रेर्यमाणायै (निपतितायै) लक्ष्ये अधः पतितायै ॥