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पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी
कर्म के फल का उपदेश।
पदार्थान्वयभाषाः - (रुद्र) हे पापियों के रुलानेवाले परमेश्वर ! (अस्यते) [बरछी वा बाण] छोड़नेवाले (ते) तुझको (नमः) नमस्कार है, (प्रतिहितायै) तानी हुई [बरछी] को (नमः) नमस्कार है। (विसृज्यमानायै) छुटती हुई को (नमः) नमस्कार है, और (निपतितायै) लक्ष्य पर पड़ी हुई [बरछी] को (नमः) नमस्कार है ॥३॥
भावार्थभाषाः - मनुष्य परमेश्वर की विविध दण्डव्यवस्था को विचार कर उसकी उपासना करके पापों से बचें ॥३॥
टिप्पणी: ३−(नमः) सत्कारः (ते) तुभ्यम् (रुद्र) हे पापिनां रोदयितः परमेश्वर (अस्यते) इषुं क्षिपते (प्रतिहितायै) हननाय संहितायै त्वदीयेषवे (विसृज्यमानायै) प्रेर्यमाणायै (निपतितायै) लक्ष्ये अधः पतितायै ॥