बार पढ़ा गया
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी
संपदा पाने का उपदेश।
पदार्थान्वयभाषाः - (जातवेदः) हे बहुत धनवाले पुरुष ! [हमारी ओर] (नि वर्तय) लौट आ। (ते) तेरे (आवृतः) आगमन के उपाय (शतम्) सौ, और (ते) तेरे (उपावृतः) समीप में भ्रमणमार्ग (सहस्रम्) सहस्र (सन्तु) होवें। (ताभिः) उन क्रियाओं से (नः) हमें (पुनः) अवश्य (आ कृधि) स्वीकार कर ॥३॥
भावार्थभाषाः - जो पुरुष अपने विद्याबल से अनेक रक्षा के उपाय जानते हैं, मनुष्य उनकी सहायता प्राप्त करते रहें ॥३॥
टिप्पणी: ३−(जातवेदः) जातानि वेदांसि धनानि यस्य तत्संबुद्धौ हे महाधनिन् पुरुष (नि वर्तय) निवृत्य आगच्छ (शतम्) बहुसंख्याकाः (ते) तव (सन्तु) (आवृतः) वृतु−क्विप्। आवर्तनानि। आगमनोपायाः (सहस्रम्) बहुप्रकाराः (ते) (उपावृतः) समीपदेशप्राप्त्युपायाः (ताभिः) आवृद्भिरुपावृद्भिश्च (नः) अस्मान् (पुनः) अवधारणे (आकृधि) स्वीकुरु ॥