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पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी
निर्बलता हटाने का उपदेश।
पदार्थान्वयभाषाः - (यथा) जैसे (स्त्रियः) स्त्रियाँ (नडम्) नरकट घास आदि को (कशिपुने) अन्न वा वस्त्र के लिये (अश्मना) पत्थर से (भिन्दन्ति) तोड़ती हैं। (एव) वैसे ही (ते) तेरे लिये (अमुष्याः) उस [नीरोग नाडी] से अलग (मुष्कयोः) दोनों अण्डकोशों के (शेपः) रोग बल को (अधि) अधिकार के साथ (भिनद्मि) मैं तोड़ता हूँ ॥५॥
भावार्थभाषाः - जैसे किसी तृण में से अन्न वा वस्त्र की सार वस्तु बचाकर अभीष्ट भाग को तोड़ डालते हैं, वैसे ही चिकित्सक लोग मर्म स्थल को छोड़कर रोगकारक नाड़ी को छेदकर स्वस्थ करें ॥५॥
टिप्पणी: ५−(यथा) येन प्रकारेण (नडम्) तृणम् (कशिपुने) मृगय्वादयश्च। उ० १।३७। इति कश गतिशासनयोः−कु, निपातनात् साधुः। अन्नाय वस्त्राय वा−अमर० २३।१३०। (स्त्रियः) (भिन्दन्ति) आघ्नन्ति (अश्मना) पाषाणेन (एव) एवम् (भिनद्मि) (ते) तुभ्यम् (शेपः) रोगबलम् (अमुष्याः) तस्या नीरोगाया नाड्याः (अधि) अधिकृत्य (मुष्कयोः) अण्डकोशयोः ॥