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पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी
केश के बढ़ाने का उपदेश।
पदार्थान्वयभाषाः - [हे मनुष्य !] (यः) जो (ते) तेरा (केशः) केश (अव पद्यते) गिर जावे (च) और (यः) जो (समूलः) समूल (वृश्चते) टूट जावे। (इदम्) अब (तम्) उस को (विश्वभेषज्या) सब [केश रोगों] की ओषधि (वीरुधा) उस जड़ी-बूटी से (अभि षिञ्चामि) चुपड़ कर ठीक करता हूँ ॥३॥
भावार्थभाषाः - मनुष्य नितत्नी नाम ओषधि से केशों के रोगों को दूर करें ॥३॥
टिप्पणी: ३−(यः) (ते) तव (अवपद्यते) निपतति (समूलः) मूलसहितः (यः) (च) (वृश्चते) वृश्च्यते। छिद्यते (इदम्) इदानीम् (तम्) केशम् (विश्वभेषज्या) सर्वस्य केशरोगस्य निवर्तयित्र्या (अभि) अभितः (सिञ्चामि) आर्द्रीकरोमि (वीरुधा) लतया ॥