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पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी
शत्रुओं के हराने का उपदेश।
पदार्थान्वयभाषाः - (आदानेन) आकर्षणपाश से और (सन्दानेन) बन्धनपाश से (अमित्रान्) अपने शत्रुओं को (आ द्यामसि) हम बाँधते हैं। (च) और (एषाम्) इनके (ये) जो (अपानाः) अपान वायु और (प्राणाः) प्राण वायु हैं। (असून्) उनके प्राणों को (असुना) अपनी बुद्धि से (सम् अच्छिदन्) उन [हमारे वीरों] ने छिन्न-भिन्न कर दिया है ॥१॥
भावार्थभाषाः - शूरवीर धावा करके अपने अस्त्र-शस्त्रों से शत्रुओं को जीवन से हताश करके निर्बल करें ॥१॥
टिप्पणी: १−(आदानेन) आदीयते आबध्यते अनेन। आकर्षणपाशेन (सन्दानेन) बन्धनपाशेन (अमित्रान्) शत्रून् (आद्यामसि) बध्नीमः (अपानाः) बहिर्गमनशीलाः श्वासवृत्तयः (ये) (च) (एषाम्) शत्रूणाम् (प्राणाः) अन्तर्गमनाः श्वासाः (असुना) स्वप्रज्ञया−निघ० ३।९। (असून्) शत्रुप्राणान् (सम्) सम्यक् (अच्छिदन्) छिदिर् द्वैधीकरणे। छिन्नवन्तः शूराः ॥