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कण्वा॑ इव॒ भृग॑वः॒ सूर्या॑ इव॒ विश्व॒मिद्धी॒तमा॑नशुः। इन्द्रं॒ स्तोमे॑भिर्म॒हय॑न्त आ॒यवः॑ प्रि॒यमे॑धासो अस्वरन् ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

कण्वा:ऽइव । भृगव: । सूर्याऽइव । विश्वम् । इत् । धीतम् । आनशु: ॥ इन्द्रम् । स्तोमेभि: । महऽयन्त: । आयव: । प्रियमेधास: । अस्वरन् ॥५९.२॥

अथर्ववेद » काण्ड:20» सूक्त:59» पर्यायः:0» मन्त्र:2


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पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी

१-२ ईश्वर की उपासना का उपदेश।

पदार्थान्वयभाषाः - (कण्वाः इव) बुद्धिमानों के समान, और (सूर्याः इव) सूर्यों के समान [तेजस्वी], (भृगवः) परिपक्व ज्ञानवाले, (महयन्तः) पूजते हुए, (प्रियमेधासः) यज्ञ को प्रिय जाननेवाले (आयवः) मनुष्यों ने (विश्वम्) व्यापक, (धीतम्) ध्यान किये गये (इन्द्रम्) इन्द्र [परमात्मा] को (इत्) ही (स्तोमेभिः) स्तोत्रों से (आनशुः) पाया है और (अस्वरन्) उच्चारा है ॥२॥
भावार्थभाषाः - मनुष्य बुद्धिमानों और सूर्यों के समान प्रतापी होकर परमात्मा के गुणों को गाते हुए आत्मोन्नति करें ॥२॥
टिप्पणी: १-२−मन्त्रौ व्याख्यातौ अ० २०।१०।१-२ ॥