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देवता: इन्द्रः ऋषि: गृत्समदः छन्द: गायत्री स्वर: सूक्त-५७

इन्द्र॑श्च मृ॒डया॑ति नो॒ न नः॑ प॒श्चाद॒घं न॑शत्। भ॒द्रं भ॑वाति नः पु॒रः ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

इन्द्र: । च । मृलयाति । न: । न । न: । पश्चात् । अघम् । नशत् ॥ भद्रम् । भवाति । न: । पुर: ॥५७.९॥

अथर्ववेद » काण्ड:20» सूक्त:57» पर्यायः:0» मन्त्र:9


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पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी

१-१० मनुष्य के कर्तव्य का उपदेश।

पदार्थान्वयभाषाः - (इन्द्रः) इन्द्र [बड़े ऐश्वर्यवाला राजा] (च) निश्चय करके (नः) हमें (मृडयाति) सुखी करे, (अघम्) पाप (नः) हमको (पश्चात्) पीछे (न) न (नशत्) नाश करे। (भद्रम्) कल्याण (नः) हमारे लिये (पुरः) आगे (भवाति) होवे ॥९॥
भावार्थभाषाः - मनुष्यों को योग्य है कि धर्मात्मा राजा के प्रबन्ध में रहकर पापों से बचकर सुख भोगें ॥९॥
टिप्पणी: ४-१०- एते मन्त्रा व्याख्याताः-अ० २।२०।१-७ ॥