वांछित मन्त्र चुनें
देवता: इन्द्रः ऋषि: गृत्समदः छन्द: गायत्री स्वर: सूक्त-५७

इन्द्रो॑ अ॒ङ्ग म॒हद्भ॒यम॒भी षदप॑ चुच्यवत्। स हि स्थि॒रो विच॑र्षणिः ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

इन्द्र: । अङ्ग । महत् । भयम् । अभि । सत् । अप । चुच्यवत् ॥ स: । हि । स्थिर: । विऽचर्षणि: ॥५७.८॥

अथर्ववेद » काण्ड:20» सूक्त:57» पर्यायः:0» मन्त्र:8


बार पढ़ा गया

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी

१-१० मनुष्य के कर्तव्य का उपदेश।

पदार्थान्वयभाषाः - (अङ्ग) हे विद्वान् ! (इन्द्र) इन्द्र [बड़े ऐश्वर्यवाले राजा] ने (महत्) बड़े और (अभि) सब ओर से (सत्) वर्तमान (भयम्) भय को (अप चुच्यवत्) हटा दिया है। (सः हि) वही (स्थिरः) दृढ़ और (विचर्षणिः) विशेष देखनेवाला है ॥८॥
भावार्थभाषाः - राजा दृढ़स्वभाव और सावधान रहकर दुष्टों से प्रजा की रक्षा करे ॥८॥
टिप्पणी: ४-१०- एते मन्त्रा व्याख्याताः-अ० २।२०।१-७ ॥