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पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी
१-१० मनुष्य के कर्तव्य का उपदेश।
पदार्थान्वयभाषाः - (अङ्ग) हे विद्वान् ! (इन्द्र) इन्द्र [बड़े ऐश्वर्यवाले राजा] ने (महत्) बड़े और (अभि) सब ओर से (सत्) वर्तमान (भयम्) भय को (अप चुच्यवत्) हटा दिया है। (सः हि) वही (स्थिरः) दृढ़ और (विचर्षणिः) विशेष देखनेवाला है ॥८॥
भावार्थभाषाः - राजा दृढ़स्वभाव और सावधान रहकर दुष्टों से प्रजा की रक्षा करे ॥८॥
टिप्पणी: ४-१०- एते मन्त्रा व्याख्याताः-अ० २।२०।१-७ ॥