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अग॑न्निन्द्र॒ श्रवो॑ बृ॒हद्द्यु॒म्नं द॑धिष्व दु॒ष्टर॑म्। उत्ते॒ शुष्मं॑ तिरामसि ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

अगन्‌ । इन्द्र । श्रव: । बृहत् । द्युम्नम् । इधिष्व । दुस्तरम् ॥ उत् । ते । शुष्मम् । तिरमसि॥५७.६॥

अथर्ववेद » काण्ड:20» सूक्त:57» पर्यायः:0» मन्त्र:6


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पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी

१-१० मनुष्य के कर्तव्य का उपदेश।

पदार्थान्वयभाषाः - (इन्द्र) हे इन्द्र ! [बड़े ऐश्वर्यवाले राजन्] (बृहत्) बड़ा (श्रवः) अन्न [हमको] (अगन्) प्राप्त हुआ है, (दुस्तरम्) दुस्तर [अजेय] (द्युम्नम्) चमकनेवाले यश को (दधिष्व) तू धारण कर, (ते) तेरे (शुष्मम्) बल को (उत् तिरामसि) हम बढ़ाते हैं ॥६॥
भावार्थभाषाः - जिस राजा के कारण बहुत अन्न आदि पदार्थ मिलें, प्रजागण उसके बल बढ़ाने में सदा प्रयत्न करें ॥६॥
टिप्पणी: ४-१०- एते मन्त्रा व्याख्याताः-अ० २।२०।१-७ ॥