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इ॑न्द्रि॒याणि॑ शतक्रतो॒ या ते॒ जने॑षु प॒ञ्चसु॑। इन्द्र॒ तानि॑ त॒ आ वृ॑णे ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

इन्द्रियाणि । शतक्रतो इति शतऽक्रतो । या । ते । जनेषु । पञ्चऽसु ॥ इन्द्र । तानि । ते । आ । वृणे ॥५७.५॥

अथर्ववेद » काण्ड:20» सूक्त:57» पर्यायः:0» मन्त्र:5


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पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी

१-१० मनुष्य के कर्तव्य का उपदेश।

पदार्थान्वयभाषाः - (शतक्रतो) हे सैकड़ों कर्मों वा बुद्धियोंवाले (इन्द्र) इन्द्र ! [बड़े ऐश्वर्यवाले राजन्] (या) जो (ते) तेरे (इन्द्रियाणि) इन्द्र [ऐश्वर्यवान्] के चिह्न धनादि (पञ्चसु जनेषु) पञ्च [मुख्य] लोगों में हैं। (ते) तेरे (तानि) उन [चिह्नों] को (आ) सब प्रकार (वृणे) मैं स्वीकार करता हूँ ॥॥
भावार्थभाषाः - बुद्धिमान् धार्मिक राजा बड़े-बड़े अधिकारियों का आदर करके प्रजा की रक्षा करे ॥॥
टिप्पणी: ४-१०- एते मन्त्रा व्याख्याताः-अ० २।२०।१-७ ॥