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पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी
१-१० मनुष्य के कर्तव्य का उपदेश।
पदार्थान्वयभाषाः - (शतक्रतो) हे सैकड़ों कर्मों वा बुद्धियोंवाले (इन्द्र) इन्द्र ! [बड़े ऐश्वर्यवाले राजन्] (या) जो (ते) तेरे (इन्द्रियाणि) इन्द्र [ऐश्वर्यवान्] के चिह्न धनादि (पञ्चसु जनेषु) पञ्च [मुख्य] लोगों में हैं। (ते) तेरे (तानि) उन [चिह्नों] को (आ) सब प्रकार (वृणे) मैं स्वीकार करता हूँ ॥॥
भावार्थभाषाः - बुद्धिमान् धार्मिक राजा बड़े-बड़े अधिकारियों का आदर करके प्रजा की रक्षा करे ॥॥
टिप्पणी: ४-१०- एते मन्त्रा व्याख्याताः-अ० २।२०।१-७ ॥