क ईं॑ वेद सु॒ते सचा॒ पिब॑न्तं॒ कद्वयो॑ दधे। अ॒यं यः पुरो॑ विभि॒नत्त्योज॑सा मन्दा॒नः शि॒प्र्यन्ध॑सः ॥
पद पाठ
क: । ईम् । वेद । सुते । सचा । पिबन्तम् । कत् । वय: । दधे ॥ अयम् । य: । पुर: । विऽभिनत्ति । ओजसा । मन्दान: । शिप्री । अन्धस: ॥५७.११॥
अथर्ववेद » काण्ड:20» सूक्त:57» पर्यायः:0» मन्त्र:11
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पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी
११-१३ सेनापति के लक्षणों का उपदेश।
पदार्थान्वयभाषाः - (कः) कौन (सचा) नित्य मेल के साथ (सुते) तत्त्वरस (पिबन्तम्) पीते हुए (ईम्) प्राप्तियोग्य [सेनापति] को (वेद) जानता है ? (कत्) कितना (वयः) जीवनसामर्थ्य [पराक्रम] (दधे) वह रखता है ? (अयम्) यह (यः) जो (शिप्री) दृढ़ जबड़ेवाला, (अन्धसः) अब का (मन्दानः) आनन्द देनेवाला [वीर] (ओजसा) बल से (पुरः) दुर्गों को (विभिनत्ति) तोड़ देता है ॥११॥
भावार्थभाषाः - जिस पराक्रमी पुरुष के शरीर बल और बुद्धिबल की थाह सामान्य पुरुष नहीं जानते, वह नीतिज्ञ अन्न आदि पदार्थ एकत्र करके वैरियों को जीतता है ॥११॥
टिप्पणी: मन्त्र ११-१३ आचुके हैं-अ० २०।३।१-३ ॥ ११-१३ एते मन्त्रा व्याख्याताः-अ० २०।३।१-३ ॥