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पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी
राजा और प्रजा के कर्तव्य का उपदेश।
पदार्थान्वयभाषाः - (इन्द्रः) इन्द्र [बड़े ऐश्वर्यवाले परमात्मा] ने (दीर्घाय) दूर तक (चक्षसे) देखने के लिये (दिवि) व्यवहार [वा आकाश] के बीच (गोभिः) वेदवाणियों द्वारा [वा किरणों वा जलों द्वारा] (सूर्यम्) सूर्य [के समान प्रेरक] और (अद्रिम्) मेघ [के समान उपकारी पुरुष] को (आ रोहयत्) ऊँचा किया और (वि) विविध प्रकार (ऐरयत्) चलाया है ॥६॥
भावार्थभाषाः - जैसे परमेश्वर के नियम से सूर्य आकाश में चलकर ताप आदि गुणों से अनेक लोकों को धारण करता और किरणों द्वारा जल सींचकर फिर बरसाकर उपकार करता है, वैसे ही दूरदर्शी राजा अपने प्रताप और उत्तम व्यवहार से सब प्रजा को नियम में रक्खे और कर लेकर उनका प्रतिपालन करे ॥६॥
टिप्पणी: ४-६-एते मन्त्रा व्याख्याताः-अ० २०।३८।४-६ ॥