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देवता: सूर्यः ऋषि: प्रस्कण्वः छन्द: गायत्री स्वर: सूक्त-४७

त॒रणि॑र्वि॒श्वद॑र्शतो ज्योति॒ष्कृद॑सि सूर्य। विश्व॒मा भा॑सि रोचन ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

तरणि: । विश्वऽदर्शत: । ज्योति:ऽकृत् । असि । सूर्य ॥ विश्वम् । आ । भासि । रोचन ॥४७.१६॥

अथर्ववेद » काण्ड:20» सूक्त:47» पर्यायः:0» मन्त्र:16


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पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी

१३-२१। परमात्मा और जीवात्मा के विषय का उपदेश।

पदार्थान्वयभाषाः - (सूर्य) हे सूर्य ! तू (तरणिः) अन्धकार से पार करनेवाला, (विश्वदर्शतः) सबका दिखानेवाला, (ज्योतिष्कृत्) [चन्द्र आदि में] प्रकाश करनेवाला (असि) है। (रोचन) हे चमकनेवाले ! तू (विश्वम्) सबको (आ) भले प्रकार (भासि) चमकाता है ॥१६॥
भावार्थभाषाः - जैसे यह सूर्य, अग्नि, बिजुली, चन्द्रमा, नक्षत्र आदि पर अपना प्रकाश डालकर उन्हें चमकीला बनाता है, वैसे ही परमात्मा अपने सामर्थ्य से सब सूर्य आदि को रचता है और वैसे ही विद्वान् लोग विद्या के प्रकाश से संसार को आनन्द देते हैं ॥१६॥
टिप्पणी: १३-२१−एते मन्त्रा व्याख्याताः-अ० १३।२।१६-२४ ॥