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पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी
१३-२१। परमात्मा और जीवात्मा के विषय का उपदेश।
पदार्थान्वयभाषाः - (अस्य) इस [सूर्य] की (केतवः) जतानेवाली (रश्मयः) किरणें (जनान् अनु) प्राणियों में (वि) विविध प्रकार से (अदृश्रन्) देखी गयी हैं, (यथा) जैसे (भ्राजन्तः) दहकते हुए (अग्नयः) अंगारे ॥१॥
भावार्थभाषाः - जैसे सूर्य की किरणें धूप, बिजुली और अग्नि के रूप से संसार में फैलती हैं, वैसे ही सब मनुष्य शुभ गुण कर्म और स्वभाव से प्रकाशमान होकर आत्मा और समाज की उन्नति करें ॥१॥
टिप्पणी: १३-२१−एते मन्त्रा व्याख्याताः-अ० १३।२।१६-२४ ॥