वांछित मन्त्र चुनें
देवता: सूर्यः ऋषि: प्रस्कण्वः छन्द: गायत्री स्वर: सूक्त-४७

अप॒ त्ये ता॒यवो॑ यथा॒ नक्ष॑त्रा यन्त्य॒क्तुभिः॑। सूरा॑य वि॒श्वच॑क्षसे ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

अप । त्ये । तायव: । यथा । नक्षत्रा । यन्ति । अक्तुऽभि: ॥ सूराय । विश्वऽचक्षसे ॥४७.१४॥

अथर्ववेद » काण्ड:20» सूक्त:47» पर्यायः:0» मन्त्र:14


बार पढ़ा गया

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी

१३-२१। परमात्मा और जीवात्मा के विषय का उपदेश।

पदार्थान्वयभाषाः - (विश्वचक्षसे) सबके दिखानेवाले (सूराय) सूर्य के लिये (अक्तुभिः) रात्रियों के साथ (नक्षत्रा) तारा गण (अप यन्ति) भाग जाते हैं, (यथा) जैसे (त्ये) वे (तायवः) चोर [भाग जाते हैं] ॥१४॥
भावार्थभाषाः - सूर्य के प्रकाश से रात्रि का अन्धकार मिट जाता है, मन्द चमकनेवाले नक्षत्र छिप जाते हैं, और चोर लोग भाग जाते हैं, वैसे ही वेदविज्ञान फैलने से अधर्म का नाश और धर्म की वृद्धि होती है ॥१४॥
टिप्पणी: १३-२१−एते मन्त्रा व्याख्याताः-अ० १३।२।१६-२४ ॥