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के॒तुं कृ॒ण्वन्न॑के॒तवे॒ पेशो॑ मर्या अपे॒शसे॑। समु॒षद्भि॑रजायथाः ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

केतुम् । कृण्वन् । अकेतवे । पेश: । मर्या: । अपेशसे । सम् । उषत्ऽभि: । अजायथा: ॥४७.१२॥

अथर्ववेद » काण्ड:20» सूक्त:47» पर्यायः:0» मन्त्र:12


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पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी

१०-१२-परमेश्वर के गुणों का उपदेश।

पदार्थान्वयभाषाः - (मर्याः) हे मनुष्यो ! (अकेतवे) अज्ञान हटाने के लिये (केतुम्) ज्ञान को और (अपेशसे) निर्धनता मिटाने के लिये (पेशः) सुवर्ण आदि धन को (कृण्वन्) उत्पन्न करता हुआ वह [परमात्मा-मन्त्र १०, ११] (उषद्भिः) प्रकाशमान गुणों के साथ (सम्) अच्छे प्रकार (अजायथाः) प्रकट हुआ है ॥१२॥
भावार्थभाषाः - मनुष्य प्रयत्न करके परमात्मा को विचारते हुए सृष्टि के पदार्थों से उपकार लेकर ज्ञानी और धनी होवें ॥१२॥
टिप्पणी: १०-१२−एते मन्त्रा व्याख्याताः-अ० २०।२६।४-६ ॥