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यु॒ञ्जन्ति॑ ब्र॒ध्नम॑रु॒षं चर॑न्तं॒ परि॑ त॒स्थुषः॑। रोच॑न्ते रोच॒ना दि॒वि ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

युञ्जन्ति । बध्नम् । अरुषम् । चरन्तम् । परि । तस्थुष: ॥ रोचन्ते । रोचना । दिवि ॥४७.१०॥

अथर्ववेद » काण्ड:20» सूक्त:47» पर्यायः:0» मन्त्र:10


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पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी

१०-१२-परमेश्वर के गुणों का उपदेश।

पदार्थान्वयभाषाः - (तस्थुषः) मनुष्य आदि प्राणियों और लोकों में (परि) सब ओर से (चरन्तम्) व्यापे हुए, (ब्रध्नम्) महान् (अरुषम्) हिंसारहित [परमात्मा] को (रोचना) प्रकाशमान पदार्थ (दिवि) व्यवहार के बीच (युञ्जन्ति) ध्यान में रखते और (रोचन्ते) प्रकाशित होते हैं ॥१०॥
भावार्थभाषाः - परमाणुओं से लेकर सूर्य आदि लोक और सब प्राणी सर्वव्यापक, सर्वनियन्ता परमेश्वर की आज्ञा को मानते हैं, उसीकी उपासना से मनुष्य पदार्थों का ज्ञान प्राप्त करके आत्मा की उन्नति करें ॥१०॥
टिप्पणी: मन्त्र १०-१२ आचुके हैं-अ० २०।२६।४-६ और आगे हैं-२०।६९।९-११ ॥ १०-१२−एते मन्त्रा व्याख्याताः-अ० २०।२६।४-६ ॥