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स नः॒ पप्रिः॑ पारयाति स्व॒स्ति ना॒वा पु॑रुहू॒तः। इन्द्रो॒ विश्वा॒ अति॒ द्विषः॑ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

स: । न: । पप्रि: । पारयाति: । स्वस्ति । नावा । पुरुऽहूत: ॥ इन्द्र: । विश्वा: । अति । द्विष: ॥४६.२॥

अथर्ववेद » काण्ड:20» सूक्त:46» पर्यायः:0» मन्त्र:2


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पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी

सेनापति के लक्षण का उपदेश।

पदार्थान्वयभाषाः - (सः) वह (पप्रिः) पूरण करनेवाला, (पुरुहूतः) बहुत पुकारा गया, (इन्द्रः) इन्द्र [बड़े ऐश्वर्यवाला सेनापति] (विश्वाः) सब (द्विषः) द्वेष करनेवाली सेनाओं को (अति) लाँघकर (नः) हमको (स्वस्ति) आनन्द के साथ (नावा) नाव से (पारयाति) पार लगावे ॥२॥
भावार्थभाषाः - युद्धकुशल सेनापति शत्रुओं को मारकर प्रजा को कष्ट से छुड़ावे, जैसे नाव से समुद्र पार करते हैं ॥२॥
टिप्पणी: २−(सः) (नः) अस्मान् (पप्रिः) अ० १२।२।४७। प्रा पूरणे-किन्। प्राता। पूरयिता (पारयाति) लेटि रूपम्। पारयेत् (स्वस्ति) क्षेमेण (नावा) नौकया (पुरुहूतः) बहुविधाहूतः (इन्द्रः) परमैश्वर्यवान् सेनापतिः (विश्वाः) सर्वाः (अति) अतीत्य। उल्लङ्घ्य (द्विषः) द्वेष्ट्रीः सेनाः ॥