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सना॒ ता त॑ इन्द्र॒ भोज॑नानि रा॒तह॑व्याय दा॒शुषे॑ सु॒दासे॑। वृष्णे॑ ते॒ हरी॒ वृष॑णा युनज्मि॒ व्यन्तु॒ ब्रह्मा॑णि पुरुशाक॒ वाज॑म् ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

सना । ता । ते । इन्द्र । भोजनानि । रातऽहव्याय । दाशुषे । सुऽदासे ॥ वृष्णे । ते । हरी इति । वृषणा । युनज्मि । व्यन्तु । ब्रह्माणि । पुरुऽशाक । वाजम् ॥३७.६॥

अथर्ववेद » काण्ड:20» सूक्त:37» पर्यायः:0» मन्त्र:6


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पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी

राजा और प्रजा के धर्म का उपदेश।

पदार्थान्वयभाषाः - (इन्द्र) हे इन्द्र ! [बड़े ऐश्वर्यवाले राजन्] (ता) वे (ते) तेरे (भोजनानि) पालन साधन (रातहव्याय) पाने योग्य पदार्थ के पानेवाले, (सुदासे) बड़े उदार (दाशुषे) दाता के लिये (सना) सेवनीय हैं। (पुरुशाक) हे महाबली ! (वृष्णे ते) तुझ बलवान् के लिये (वृषणा) दो बलवान् (हरी) घोड़ों [के समान बल और पराक्रम] को (युनज्मि) मैं जोड़ता हूँ, वे [प्रजाजन] (ब्रह्माणि) अनेक धनों को और (वाजम्) बल को (व्यन्तु) प्राप्त होवें ॥६॥
भावार्थभाषाः - राजा लोग कर देनेवाले राजभक्तों का पालन करके बल और पराक्रम के साथ प्रजाजनों की सब प्रकार उन्नति करें ॥६॥
टिप्पणी: ६−(सना) षण संभक्तौ-अप्। सनानि सनातनानि। विभजनीयानि (ता) प्रसिद्धानि (ते) तव (इन्द्र) हे परमैश्वर्यवन् राजन् (भोजनानि) पालनसाधनानि (रातहव्याय) रा दानादनयोः-क्त। प्राप्तप्राप्तव्यपदार्थाय (दाशुषे) दात्रे (सुदासे) दासृ दाने-विट्। महादानिने। उदाराय (वृष्णे) बलवते (हरी) अश्वसमानौ बलपराक्रमौ (वृषणा) बलवन्तौ (युनज्मि) योजयामि (व्यन्तु) अ०७।४९।२। वी गत्यादिषु। प्राप्नुवन्तु (ब्रह्माणि) धनानि (पुरुशाक) शक्लृ शक्तौ-घञ्। हे बहुशक्तिमन् (वाजम्) बलम् ॥