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इन्द्रो॑ ब्र॒ह्मा ब्राह्म॑णात्सु॒ष्टुभः॑ स्व॒र्कादृ॒तुना॒ सोमं॑ पिबतु ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

इन्द्र: । ब्रह्मा । ब्राह्मणात् । सुऽस्तुभ: । सुऽअर्कात् । ऋतुना । सोमम् । पिबतु ॥२.३॥

अथर्ववेद » काण्ड:20» सूक्त:2» पर्यायः:0» मन्त्र:3


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पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी

विद्वानों के व्यवहार का उपदेश।

पदार्थान्वयभाषाः - (इन्द्रः) परमऐश्वर्यवाला (ब्रह्मा) ब्रह्मा [वेदज्ञाता पुरुष] (सुष्टुभः) बड़े स्तुतियोग्य, (स्वर्कात्) बड़े पूजनीय (ब्राह्मणात्) ब्राह्मण [वेदोक्त ज्ञान] से (ऋतुना) ऋतु के अनुसार (सोमम्) उत्तम ओषधियों के रस को (पिबतु) पीवे ॥३॥
भावार्थभाषाः - वेदज्ञानी पुरुष वेदज्ञान से सदा सुख प्राप्त करे ॥३॥
टिप्पणी: ३−(इन्द्रः) परमैश्वर्यवान् (ब्रह्मा) वेदज्ञाता पुरुषः (ब्राह्मणात्) वेदोक्तज्ञानात्। शिष्टं पूर्ववत् ॥