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पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी
राजा और प्रजा के कर्तव्य का उपदेश।
पदार्थान्वयभाषाः - (गिरा) वाणी से (संभृतः) पुष्ट किया गया, (सबलः) सबल, (अनपच्युतः) न गिरने योग्य, (ऋष्वः) गतिवाला, और (अस्तृतः) बे-रोक सेनापति (वज्रः न) बिजुली के समान (ववक्षे) रिस होवे ॥१४॥
भावार्थभाषाः - जो मनुष्य अपनी बात में सच्चा महाबली हो, वह सेनानी होकर शत्रुओं पर बिजुली के समान क्रोध करे ॥१४॥
टिप्पणी: १२-१४−एते मन्त्रा व्याख्याताः-अथ० २०।४७।१-३ ॥