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प॒त्नी यदृ॑श्यते प॒त्नी यक्ष्य॑माणा जरित॒रोथामो॑ दै॒व। हो॒ता वि॑ष्टीमे॒न ज॑रित॒रोथामो॑ दै॒व ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

पत्नी । यत् । दृश्यते । पत्नी । यक्ष्यमाणा । जरित: ।आ । उथाम: । दैव ॥ होता । विष्टीमेन । जरित: । आ । उथाम:। दैव ॥१३५.५॥

अथर्ववेद » काण्ड:20» सूक्त:135» पर्यायः:0» मन्त्र:5


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पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी

मनुष्य के कर्तव्य का उपदेश।

पदार्थान्वयभाषाः - (पत्नी) पत्नी (यत्) यहाँ पर (यक्ष्यमाणा) पूजी जाती हुई (पत्नी) पत्नी (दृश्यते) दीखती है, [वहाँ] (जरितः) हे स्तुति करनेवाले (दैव) परमात्मा को देवता माननेवाले विद्वान् ! (आ) सब ओर से (उथामः) हम उठते हैं। (विष्टीमेन) विशेष कोमलपन के साथ (होता) तू दाता है, (जरितः) हे स्तुति करनेवाले (देव) परमात्मा को देवता माननेवाले विद्वान् ! (आ) सब ओर से (उथामः) हम उठते हैं ॥॥
भावार्थभाषाः - पत्नी और पति गुणवान् और परमेश्वरभक्त होकर आनन्द भोगें ॥॥
टिप्पणी: −(पत्नी) वेदविधानेनोढा। गृहिणी (यत्) यत्र (दृश्यते) प्रेक्ष्यते (पत्नी) (यक्ष्यमाणा) पूज्यमाना (जरितः, आ, उथामः, दैव) म० १, ३। (होता) त्वं दातासि (विष्टीमेन) वि+ष्टीम क्लेदे−घञ्। विशेषेण आर्द्रीभावेन। कोमलत्वेन। अन्यद् गतम् ॥