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आय॑ व॒नेन॑ती॒ जनी॑ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

आऽअय । वनेनती । जनी ॥१३१.८॥

अथर्ववेद » काण्ड:20» सूक्त:131» पर्यायः:0» मन्त्र:8


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पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी

ऐश्वर्य की प्राप्ति का उपदेश।

पदार्थान्वयभाषाः - (वनेनती) उपकार में झुकनेवाली (जनी) माता होकर (आय) तू आ ॥८॥
भावार्थभाषाः - सब मनुष्य और स्त्रियाँ सदा उपकार करके क्लेशों से बचें और परस्पर प्रीति से रहें ॥६-११॥
टिप्पणी: ८−(आय) अय गतौ। आगच्छ (वनेनती) वन उपकारे-अच्। पातेर्डतिः। उ० ४।७। णम प्रह्वत्वे शब्दे च-डति, ङीप्। उपकारे नम्रा (जनी) जन जनने-इन्, ङीप् जनयित्री। माता सती त्वम् ॥