वांछित मन्त्र चुनें

अहु॑ल कुश वर्त्तक ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

अहल । कुश । वर्त्तक ॥१३१.६॥

अथर्ववेद » काण्ड:20» सूक्त:131» पर्यायः:0» मन्त्र:6


बार पढ़ा गया

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी

ऐश्वर्य की प्राप्ति का उपदेश।

पदार्थान्वयभाषाः - (अहल) हे प्रकाशमान ! (कुश) हे पापनाशक ! (वर्त्तक) हे प्रवृत्ति करनेवाले ! [मनुष्य] ॥६॥
भावार्थभाषाः - सब मनुष्य और स्त्रियाँ सदा उपकार करके क्लेशों से बचें और परस्पर प्रीति से रहें ॥६-११॥
टिप्पणी: ६−(अहल) शकिशम्योर्नित्। उ० १।११२”। अहि गतौ दीप्तौ च-कलप्रत्ययः। हे दीप्यमान (कुश) कु पापं श्यतीति, शो तनूकरणे-डप्रत्ययः। हे पापनाशक (वर्त्तक) वृतु वर्तने-ण्वुल्। हे प्रवृत्तिशील ॥