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पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी
ऐश्वर्य की प्राप्ति का उपदेश।
पदार्थान्वयभाषाः - (पाक) हे रक्षक श्रेष्ठ पुरुष ! (बलिः) बलि [भोजन आदि की भेंट होवे] ॥१२॥
भावार्थभाषाः - मनुष्य उचित रीति से भोजन आदि का उपहार वा दान और कर आदि का ग्रहण करके दृढ़चित्त होकर शत्रुओं का नाश करे ॥१२-१६॥
टिप्पणी: १२−(पाक) इण्भीकापा०। उ० ३।४३। पा रक्षणे-कन्। पाकः प्रशस्यनाम-निघ० ३।८। पाकः पक्तव्यो भवति विपक्वप्रज्ञ आदित्यः-निरु० ३।१२। हे रक्षक। प्रशस्य (बलिः) सर्वधातुभ्य इन्। उ० ४।११८। बल प्राणने धान्यावरोधने च-इन्। भोजनादिदानम्। उपहारः। राजग्राह्यः करः ॥