वांछित मन्त्र चुनें

वृषो॑ अ॒ग्निः समि॑ध्य॒तेऽश्वो॒ न दे॑व॒वाह॑नः। तं ह॒विष्म॑न्त ईडते ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

वृषो इति । अग्नि: । सम् । इध्यते । अश्व: । न । देवऽवाहन: ॥ तम् । हविष्मन्त: । ईलते ॥१०२.२॥

अथर्ववेद » काण्ड:20» सूक्त:102» पर्यायः:0» मन्त्र:2


बार पढ़ा गया

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी

परमेश्वर के गुणों का उपदेश।

पदार्थान्वयभाषाः - (अश्वः न) शीघ्रगामी घोड़े के समान (देववाहनः) उत्तम पदार्थों का पहुँचानेवाला (वृषो) बलवान् ही (अग्निः) अग्नि [प्रकाशमान परमेश्वर] (सम्) भले प्रकार (इध्यते) प्रकाश करता है। (हविष्मन्तः) ग्रहण करने योग्य वस्तुओंवाले पुरुष (तम्) उसको (ईडते) खोजते हैं ॥२॥
भावार्थभाषाः - जैसे घोड़े आदि वाहन द्वारा पदार्थ प्राप्त किये जाते हैं, वैसे ही परमात्मा सब संसार को वायु जल आदि उत्तम पदार्थ सदा पहुँचाता है ॥२॥
टिप्पणी: २−(वृषो) वृषैव। बलिष्ठ एव (अग्निः) प्रकाशमानः परमेश्वरः (सम्) सम्यक् (इध्यते) दीप्यते (अश्वः) तुरङ्गः (न) इव (देववाहनः) दिव्यपदार्थवाहकः (तम्) (हविष्मन्तः) ग्राह्यपदार्थयुक्ताः पुरुषाः (ईडते) म० १। अध्येषणया प्राप्नुवन्ति ॥