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पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी
राजा और प्रजा के कर्तव्य का उपदेश।
पदार्थान्वयभाषाः - (विमहसः) हे विविध पूजनीय (मरुतः) शूर विद्वानो ! (यस्य) जिस [राजा] के (क्षये) ऐश्वर्य में (दिवः) उत्तम व्यवहारों की (पाथ) तुम रक्षा करते हो, (सः हि) वही (सुगोपातमः) अच्छे प्रकार पृथिवी का अत्यन्त पालनेवाला (जनः) पुरुष है ॥२॥
भावार्थभाषाः - विद्वान् प्रजागण बुद्धिमान् राजा का सहाय करके परस्पर ऐश्वर्य बढ़ावें, जिससे वह सर्वथा प्रजा की रक्षा कर सके ॥२॥
टिप्पणी: यह मन्त्र ऋग्वेद में है-१।८६।१ और यजु० ८।३१ ॥ २−(मरुतः) हे शूरविद्वांसः (यस्य) राज्ञः (हि) खलु (क्षये) क्षि निवासगत्योः, ऐश्वर्ये च-अच्। ऐश्वर्ये (पाथ) सांहितिको दीर्घः। रक्षथ (दिवः) दिव्यव्यवहारान् (विमहसः) हे विविधपूजनीयाः (सः) स राजा (सुगोपातमः) अतिशयेन सुष्ठु पृथिवीरक्षकः (जनः) पुरुषः ॥