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पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी
मनुष्यों को कर्तव्य का उपदेश।
पदार्थान्वयभाषाः - (यानि) जिन (कानि) किन्हीं (चित्) भी [शान्तानि] शान्त कर्मों को (लोके) संसार में (सप्तऋषयः) सात ऋषि [कान, आँख, नाक, जिह्वा, त्वचा पाँच ज्ञानेन्द्रिय मन और बुद्धि] (विदुः) जानते हैं। (सर्वाणि) वे सब (मे) मेरे लिये (शम्) शान्तिदायक (भवन्तु) होवें, (मे) मेरे लिये (शम्) शान्ति [आरोग्यता धैर्य आदि] (अस्तु) होवे, (मे) मेरे लिये (अभयम्) अभय (अस्तु) होवे ॥१३॥
भावार्थभाषाः - मनुष्यों को योग्य है कि संसार के सब पदार्थों को साक्षात् करके उनसे यथावत् लाभ उठावें और धर्म का आचरण करते हुए धैर्य के साथ निर्भय रहें ॥१३॥
टिप्पणी: १३−(यानि कानि) उक्तानुक्तानि (चित्) एव (शान्तानि) शान्तियुक्तानि कर्माणि (लोके) संसारे (सप्तऋषयः) म० १२। मनोबुद्धिसहितानि पञ्चज्ञानेन्द्रियाणि (विदुः) जानन्ति (सर्वाणि) (शम्) शान्तकराणि (भवन्तु) (मे) मह्यम् (शम्) (मे) (अस्तु) (अभयम्) भयराहित्यम् (मे) (अस्तु) ॥