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पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी
मनुष्यों को कर्तव्य का उपदेश।
पदार्थान्वयभाषाः - (चान्द्रमसाः) चन्द्रमा के (ग्रहाः) ग्रह [कृत्तिका आदि नक्षत्र] (नः) हमें (शम्) शान्तिदायक [होवें], (च) और (आदित्यः) सूर्य (राहुणा) राहु [ग्रह विशेष] के साथ (शम्) शान्तिदायक [होवे]। (मृत्युः) मृत्युरूप (धूमकेतुः) धूमकेतु [पुच्छल तारा] (नः) हमें (शम्) शान्तिदायक [हो], (तिग्मतेजसः) तीक्ष्ण तेजवाले (रुद्राः) गतिमान् [बृहस्पति आदि ग्रह] (शम्) शान्तिदायक [होवें] ॥१०॥
भावार्थभाषाः - राहु ग्रह विशेष, प्रकाश को रोककर सूर्य और चन्द्र के ग्रहण का कारण होता है, धूमकेतु अपनी टेढ़ी चाल से अनेक ग्रहों और नक्षत्रों को टकराकर नाश करता है, मनुष्य ज्योतिष शास्त्र द्वारा दूरदर्शी होकर विघ्नों से बचने का उपाय करें ॥१०॥
टिप्पणी: १०−(शम्) शान्तिप्रदाः (नः) अस्मभ्यम् (ग्रहाः) कृत्तिकादिनक्षत्रगणाः (चान्द्रमसाः) चन्द्रलोकसम्बन्धिनः (शम्) (आदित्यः) आदीप्यमानः सूर्यः (च) (राहुणा) दृसनिजनिचरिचटिरहिभ्यो ञुण्। उ० १।३। रह त्यागे−ञुण्। ज्योतिश्चक्रस्थेन सूर्यकिरणसम्पर्काभावेन जायमानपृथिवीच्छायाकारकेण ग्रहभेदेन (शम्) (नः) (मृत्युः) मृत्युरूपः (धूमकेतुः) उत्पारूपोऽशुभसूचकस्तारापुञ्जरूपोऽशुभसूचकस्तारापुञ्जभेदः (शम्) (रुद्राः) रु गतौ-क्विप्, तुक्। रो मत्वर्थीयः। गतिमन्तो ग्रहाः (तिग्मतेजसः) तीक्ष्णतापाः ॥