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पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी
जीवन बढ़ाने के लिये उपदेश।
पदार्थान्वयभाषाः - [हे विद्वानो !] तुम (संजीवाः) मिलकर जीनेवाले (स्थ) हो, (संजीव्यासम्) मैं मिलकर जीता रहूँ, (सर्वम्) सम्पूर्ण (आयुः) आयु (जीव्यासम्) मैं जीता रहूँ ॥३॥
भावार्थभाषाः - मनुष्यों को परस्पर सहाय से अपना जीवन भोगना चाहिये ॥३॥
टिप्पणी: ३−(संजीवाः) संयोगेन जीवन्तः (सं जीव्यासम्) संयोगेन प्राणान् धारयेयम् ॥