वांछित मन्त्र चुनें

ये दे॒वाना॑मृ॒त्विजो॒ ये च॑ य॒ज्ञिया॒ येभ्यो॑ ह॒व्यं क्रि॒यते॑ भाग॒धेय॑म्। इ॒मं य॒ज्ञं स॒ह पत्नी॑भि॒रेत्य॒ याव॑न्तो दे॒वास्त॑वि॒षा मा॑दयन्ताम् ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

ये। देवानाम्। ऋत्विजः। ये। च। यज्ञियाः। येभ्यः। हव्यम्। क्रियते। भागऽधेयम्। इमम्। यज्ञम्। सह। पत्नीभिः। आऽइत्य। यावन्तः। देवाः। तविषाः। मादयन्ताम् ॥५८.६॥

अथर्ववेद » काण्ड:19» सूक्त:58» पर्यायः:0» मन्त्र:6


बार पढ़ा गया

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी

आत्मा की उन्नति का उपदेश।

पदार्थान्वयभाषाः - (ये) जो (देवानाम्) विद्वानों में (ऋत्विजः) सब ऋतुओं में यज्ञ करनेवाले, (च) और (ये) जो (यज्ञियाः) पूजायोग्य हैं, और (येभ्यः) जिनके लिये (हव्यम्) देने योग्य (भागधेयम्) भाग (क्रियते) किया जाता है। (इमम्) इस (यज्ञम्) यज्ञ में (पत्नीभिः सह) [अपनी] पत्नियों सहित (एत्य) आकर, (यावन्तः) जितने (तविषाः) बड़े (देवाः) विद्वान् हैं, [हमें] (मादयन्ताम्) वे प्रसन्न करें ॥६॥
भावार्थभाषाः - मनुष्यों को योग्य है कि विद्वान् ऋषि महात्माओं और विदुषी स्त्रियों का यथावत् सत्कार करके उन्नति करें ॥६॥
टिप्पणी: ६−(ये) (देवानाम्) विदुषां मध्ये (ऋत्विजः) सर्वकालेषु यष्टारः (ये) (च) (यज्ञियाः) पूजार्हाः (येभ्यः) (हव्यम्) दातव्यम् (क्रियते) अनुष्ठीयते (भागधेयम्) भागम् (इमम्) प्रत्यक्षम् (यज्ञम्) पूजनीयं व्यवहारम् (सह) (पत्नीभिः) विदुषीभिः स्त्रीभिः (एत्य) आगत्य (यावन्तः) यत्परिमाणाः (देवाः) विद्वांसः (तविषाः) तवेर्णिद्वा। उ० १।४८। तव वृद्धौ, सौ० धा०-टिषच्। तविषो महन्नाम-निघ० ३।३। महान्तः (मादयन्ताम्) तर्पयन्तु अस्मान् ॥