पू॒र्णः कु॒म्भोऽधि॑ का॒ल आहि॑त॒स्तं वै पश्या॑मो बहु॒धा नु सन्तः॑। स इ॒मा विश्वा॒ भुव॑नानि प्र॒त्यङ्का॒लं तमा॒हुः प॑र॒मे व्योमन् ॥
पद पाठ
पूर्णः। कुम्भः। अधि। काले। आऽहितः। तम्। वै। पश्यामः। बहुऽधा। नु। सन्तः। सः। इमा। विश्वा। भुवनानि। प्रत्यङ्। कालम्। तम्। आहुः। परमे। विऽओमन् ॥५३.३॥
अथर्ववेद » काण्ड:19» सूक्त:53» पर्यायः:0» मन्त्र:3
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पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी
काल की महिमा का उपदेश।
पदार्थान्वयभाषाः - (काले अधि) काल [समय] के ऊपर (पूर्णः) भरा हुआ (कुम्भः) घड़ा [सम्पत्तियों का कोश] (आहितः) रक्खा है, (तम्) उस [घड़े] को (वै) निश्चय करके (सन्तः) वर्त्तमान हम (नु) ही (बहुधा) अनेक प्रकार (पश्यामः) देखते हैं। (सः) वह [काल] (इमा) इन (विश्वा) सब (भुवनानि) सत्तावालों के (प्रत्यङ्) सामने चलता हुआ है, (तम्) उस (कालम्) काल को (परमे) अति ऊँचे (व्योमन्) विविध रक्षास्थान [ब्रह्म] में [वर्तमान] (आहुः) वे [बुद्धिमान् लोग] बताते हैं ॥३॥
भावार्थभाषाः - समय के सुप्रयोग से धर्मात्मा लोग अनेक सम्पत्तियों के साथ सद्गति प्राप्त करते हैं, वह महाप्रबल सब स्थानों में परमात्मा के सामर्थ्य के बीच वर्तमान है, उसकी महिमा को बुद्धिमान् जानते हैं ॥३॥
टिप्पणी: ३−(पूर्णः) पूरितः (कुम्भः) घटः। सम्पत्तीनां कोशः (अधि) उपरि (काले) म० १। समये (आहितः) स्थापितः (तम्) पूर्णं कुम्भम् (वै) निश्चयेन (पश्यामः) अनुभवामः (बहुधा) नानाप्रकारेण (नु) निश्चयेन (सन्तः) वर्त्तमाना वयम् (सः) कालः (इमा) दृश्यमानानि (भुवनानि) भवनवन्ति जगन्ति (प्रत्यङ्) प्रति प्रत्यक्षम् अञ्जन् गच्छन् वर्तते (कालम्) (तम्) तादृशम् (आहुः) कथयन्ति (परमे) सर्वोत्कृष्टे (व्योमन्) व्योमनि। विविधं रक्षके परमात्मनि वर्तमानम् ॥