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पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी
रात्रि में रक्षा का उपदेश।
पदार्थान्वयभाषाः - (रात्रि) रात्रि (मातः) माता ! तू (उषसे) उषा [प्रभात वेला] को (नः) हमें (परि देहि) सौंप। (उषाः) उषा (नः) हमें (अह्ने) दिन को, और (अहः) दिन (तुभ्यम्) तुझ को, (विभावरि) हे चमकवाली ! (परि ददातु) सौंपे ॥२॥
भावार्थभाषाः - मनुष्य तारों से शोभायमान रात्रि बीतने पर प्रातःकाल उठें और दिन के कर्तव्य करके रात्रि में रात्रि के कर्तव्य करें ॥२॥
टिप्पणी: यह मन्त्र कुछ भेद से आगे है-५०।७ ॥ २−(रात्रि) (मातः) हे मातृतुल्ये (उषसे) प्रभातवेलायै (नः) अस्मान् (परि देहि) समर्पय (उषाः) प्रभातवेला (नः) अस्मान् (अह्ने) दिनाय (परि ददातु) समर्पयतु (अहः) दिनम् (तुभ्यम्) (विभावरि) वि+भा दीप्तौ-क्वनिप्। वनो र च। पा० ४।१।७। ङीब्रेफौ। हे दीप्तिमति ॥