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या नः॒ पीप॑रद॒श्विना॒ ज्योति॑ष्मती॒ तम॑स्ति॒रः। ताम॒स्मे रा॑सता॒मिष॑म् ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

या। नः। पीपरत्। अश्विना। ज्योतिष्मती । तमः। तिरः। ताम्। अस्मे। रासताम्। इषम् ॥४०.४॥

अथर्ववेद » काण्ड:19» सूक्त:40» पर्यायः:0» मन्त्र:4


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पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी

बुद्धि बढ़ाने का उपदेश।

पदार्थान्वयभाषाः - (या) जो (ज्योतिष्मती) उत्तम ज्योतिवाली [अन्न-सामग्री] (तमः) अन्धकार का (तिरः) तिरस्कार करके (नः) हमें (पीपरत्) पूर्ण करे, (अश्विना) व्यवहारों में व्यापक दोनों [माता-पिता] (ताम्) उस (इषम्) अन्नसामग्री को (अस्मे) हमें (रासताम्) दिया करें ॥४॥
भावार्थभाषाः - माता-पिता सन्तानों को ऐसा विद्वान् और बलवान् बनावें कि जिससे उत्तम अन्न के भोगने से नेत्रों में कभी अन्धकार न छाए, किन्तु सदा ज्योति बनी रहे ॥४॥
टिप्पणी: यह मन्त्र कुछ भेद से ऋग्वेद में है-१।४६।६॥४−(या) इट्। अन्नसामग्री (नः) अस्मान् (पीपरत्) पूरयेत् (अश्विना) व्यवहारेषु व्यापकौ मातापितरौ (ज्योतिष्मती) प्रकाशवती (तमः) अन्धकारम् (तिरः) तिरस्कृत्य (ताम्) तादृशीम् (अस्मे) अस्मभ्यम् (रासताम्) प्रयच्छतां तौ (इषम्) इषम्, अन्ननाम-निघ०२।७। इष्यमानामन्नसामग्रीम् ॥