वांछित मन्त्र चुनें

त्रिः शाम्बु॑भ्यो॒ अङ्गि॑रेभ्य॒स्त्रिरा॑दि॒त्येभ्य॒स्परि॑। त्रिर्जा॒तो वि॒श्वदे॑वेभ्यः। स कुष्ठो॑ वि॒श्वभे॑षजः सा॒कं सोमे॑न तिष्ठति। त॒क्मानं॒ सर्वं॑ नाशय॒ सर्वा॑श्च यातुधा॒न्यः ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

त्रिः। शाम्बुऽभ्यः। अङ्गिरेभ्यः। त्रिः। आदित्येभ्यः। परि। त्रिः। जातः। विश्वऽदेवेभ्यः। सः। कुष्ठः। विश्वऽभेषजः। साकम्। सोमेन। तिष्ठति। तक्मानम्। सर्वम्। नाशय। सर्वाः। च। यातुऽधान्यः ॥३९.५॥

अथर्ववेद » काण्ड:19» सूक्त:39» पर्यायः:0» मन्त्र:5


बार पढ़ा गया

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी

रोगनाश करने का उपदेश।

पदार्थान्वयभाषाः - (शाम्बुभ्यः) उपाय करनेवाले (अङ्गिरेभ्यः) ज्ञानियों के लिये (त्रिः) तीन बार [बालकपन, यौवन और बुढ़ापे में], (आदित्येभ्यः) अखण्ड ब्रह्मचारियों के लिये (त्रिः) तीन बार [बालकपन आदि में] और (विश्वदेवेभ्यः) सब विद्वानों के लिये (त्रिः) तीन बार [बालकपन आदि में] (परि) सब प्रकार (जातः) प्रकट हुआ (सः) वह (विश्वभेषजः) सर्वौषध (कुष्ठः) कुष्ठ [मन्त्र १] (सोमेन साकम्) सोमरस के साथ (तिष्ठति) ठहरता है [सोम के समान गुणकारी है]। तू (सर्वम्) सब (तक्मानम्) जीवन के कष्ट देनेवाले ज्वर को (च) और (सर्वाः) सब (यातुधान्यः) दुःखदायिनी पीड़ाओं को (नाशय) नाश करदे ॥५॥
भावार्थभाषाः - यह कुष्ठ महौषध विद्वानों के लिये बालकपन, यौवन और बुढ़ापे तीनों-पनों में सोमरस के समान स्वास्थ्यवर्द्धक है ॥५॥
टिप्पणी: ५−(त्रिः) त्रिवारम्, बाल्ययौवनवार्धकेषु (शाम्बुभ्यः) कृवापा०। उ०१।१। शम्ब सम्बन्धने गतौ च-उण्। उपायशीलेभ्यः (अङ्गिरेभ्यः) अशेर्नित्। उ०१।५२। अगि गतौ-किरच् नित्। विज्ञानिभ्यः (त्रिः) (आदित्येभ्यः) अखण्डव्रतिभ्यः (परि) सर्वतः (त्रिः) (जातः) प्रकटीभूतः (विश्वदेवेभ्यः) सर्वविद्वद्भ्यः (सः) (कुष्ठः) म०१। औषधविशेषः (विश्वभेषजः) सर्वरोगौषधः (सोमेन साकम्) सोमसमानप्रभावेण सह (तिष्ठति) वर्तते। अन्यत् पूर्ववत्-म०१॥