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पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी
सबकी रक्षा का उपदेश।
पदार्थान्वयभाषाः - [हे औषध !] तू (जङ्गिडः) जङ्गिड [संचार करनेवाला] (जङ्गिडः) जङ्गिड [संचार करनेवाला औषध] (असि) है, तू (जङ्गिडः) जङ्गिड [संचार करनेवाला] (रक्षिता) रक्षक (असि) है। (जङ्गिडः) जङ्गिड [संचार करनेवाला औषध] (अस्माकम्) हमारे (सर्वम्) सब (द्विपात्) दोपाये और (चतुष्पात्) चौपाये की (रक्षतु) रक्षा करे ॥१॥
भावार्थभाषाः - जङ्गिड उत्तम औषध विशेष शरीर में प्रविष्ट होकर रुधिर का संचार करके रोग को मिटाता है, मनुष्य उसके सेवन से स्वास्थ्य बढ़ावें ॥१॥
टिप्पणी: इस सूक्त का मिलान करो-अ०२।४।१-६॥१−(जङ्गिडः) अ०२।४।१। अजिरशिशिरशिथिल०। उ०१।५३। गमेर्यङ्लुगन्तात्-किरच् स च डित्, रस्य डः। जङ्गमः। रुधिरसंचारक औषधविशेषः (असि) (जङ्गिडः) (रक्षिता) रक्षकः (असि) (जङ्गिडः) (द्विपात्) पादद्वयोपेतं प्राणिजातम् (चतुष्पात्) पादचतुष्टयोपेतं गोमहिष्यादिकम् (अस्माकम्) (सर्वम्) (रक्षतु) पालयतु (जङ्गिडः) ॥