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पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी
ऐश्वर्य की प्राप्ति का उपदेश।
पदार्थान्वयभाषाः - (वनस्पते) हे सेवकों के रक्षक ! [परमेश्वर] (यथा) जिस प्रकार से (त्वम्) तू (अग्रे) पहिले (पुष्ट्या सह) पोषण के साथ (जज्ञिषे) प्रकट हुआ है। (एव) वैसे ही (मे) मुझको (सरस्वती) सरस्वती [विज्ञानवती विद्या] (धनस्य) धन की (स्फातिम्) बढ़ती (आ) सब ओर से (दधातु) देवे ॥९॥
भावार्थभाषाः - परमात्मा ने पहिले से ही सब पोषण पदार्थ उत्पन्न कर दिये हैं, मनुष्य वेद आदि सत्य विद्याएँ ग्रहण करके धन को प्राप्त करें ॥९॥
टिप्पणी: ९−(यथा) येन प्रकारेण (अग्रे) आदौ (त्वम्) (वनस्पते) वनानां सेवकानां पालक परमेश्वर (पुष्ट्या) समृद्ध्या (सह) (जज्ञिषे) प्रादुर्भूतोऽसि (एव) एवम् (धनस्य) (मे) मह्यम् (स्फातिम्) वृद्धिम् (आ) समन्तात् (दधातु) ददातु (सरस्वती) विज्ञानवती विद्या ॥