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पु॒ष्टिं प॑शू॒नां परि॑ जग्रभा॒हं चतु॑ष्पदां द्वि॒पदां॒ यच्च॑ धा॒न्यम्। पयः॑ पशू॒नां रस॒मोष॑धीनां॒ बृह॒स्पतिः॑ सवि॒ता मे॒ नि य॑च्छात् ॥

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पद पाठ

पुष्टिम्। पशूनाम्। परि। जग्रभ। अहम्। चतुःऽपदाम्। द्विऽपदाम्। यत्। च। धान्यम्। पयः। पशूनाम्। रसम्। ओषधीनाम्। बृहस्पतिः। सविता। मे। नि। यच्छात् ॥३१.५॥

अथर्ववेद » काण्ड:19» सूक्त:31» पर्यायः:0» मन्त्र:5


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पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी

ऐश्वर्य की प्राप्ति का उपदेश।

पदार्थान्वयभाषाः - (अहम्) मैंने (चतुष्पदाम्) चौपाये और (द्विपदाम्) दोपाये (पशूनाम्) जीवों की, (च) और (यत्) जो (धान्यम्) धान्य है, [उसकी भी], (पुष्टिम्) बढ़ती को (परि) सब ओर से (जग्रभ) ग्रहण किया है। (पशूनाम्) पशुओं का (पयः) दूध और (औषधीनाम्) ओषधियों [सोमलता अन्न आदि] का (रसम्) रस (बृहस्पतिः) बड़े ज्ञानों का रक्षक (सविता) सर्वप्रेरक [गृहपति वा परमेश्वर] (मे) मुझे (नि) नित्य (यच्छात्) देवे ॥५॥
भावार्थभाषाः - मनुष्य परमेश्वर की भक्तिपूर्वक सब आवश्यक पदार्थों का संग्रह करके प्रजा की यथावत् रक्षा करे ॥५॥
टिप्पणी: ५−(पुष्टिम्) वृद्धिम् (पशूनाम्) प्राणिनाम् (परि) सर्वतः (जग्रभ) हस्य भः। जग्रह। गृहीतवानस्मि (चतुष्पदाम्) पादचतुष्टययुक्तानाम् (द्विपदाम्) पादद्वयोपेतानाम् (यत्) (च) (धान्यम्) अन्नम्, तस्य पुष्टिं च (पयः) क्षीरम् (पशूनाम्) गवादीनाम् (रसम्) (ओषधीनाम्) सोमलताव्रीहियवादीनाम् (बृहस्पतिः) बृहतां ज्ञानानां पालकः (सविता) सर्वप्रेरकः गृहपतिः परमेश्वरो वा (मे) मह्यम् (नि) नित्यम् (यच्छात्) लेटि रूपम्। दद्यात् ॥