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यद्द्वि॒पाच्च॒ चतु॑ष्पाच्च॒ यान्यन्ना॑नि॒ ये रसाः॑। गृ॒ह्णे॒हं त्वे॑षां भू॒मानं॒ बिभ्र॒दौदु॑म्बरं म॒णिम् ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

यत्। द्विऽपात्। च। चतुःपात्। च। यानि। अन्नानि। ये। रसाः। गृह्णे। अहम्। तु । एषाम्। भूमानम्। बिभ्रत्। औदुम्बरम्। मणिम् ॥३१.४॥

अथर्ववेद » काण्ड:19» सूक्त:31» पर्यायः:0» मन्त्र:4


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पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी

ऐश्वर्य की प्राप्ति का उपदेश।

पदार्थान्वयभाषाः - (यत्) जो कुछ (द्विपात्) दोपाया (च) और (चतुष्पात्) चौपाया है, (च) और (यानि) जो-जो (अन्नानि) अन्न और (ये) जो-जो (रसाः) रस हैं। (औदुम्बरम्) संघटन चाहनेवाले (मणिम्) श्रेष्ठ [परमेश्वर] को (बिभ्रत्) धारण करता हुआ (तु) ही (अहम्) मैं (एषाम्) इनकी (भूमानम्) बहुतायत को (गृह्णे) ग्रहण करूँ ॥४॥
भावार्थभाषाः - मनुष्य सर्वशक्तिमान् परमेश्वर की उपासना करके प्रयत्न के साथ उत्तम मनुष्यों, उत्तम अन्नों, और उत्तम दूध-घी शर्करा गुड़ादि रसों को बहुतायत से रक्खें ॥४॥
टिप्पणी: इस मन्त्र का मिलान करो-अ०५।२८।३॥४−(यत्) (द्विपात्) पादद्वयोपेतं मनुष्यादिकम् (च) (चतुष्पात्) पादचतुष्टयोपेतं गवादिकं पशुजातम् (च) (यानि) (अन्नानि) व्रीहियवादीनि (ये) (रसाः) दधिक्षीरमधुशर्करागुडादिरूपाः (गृह्णे) स्वीकरोमि (अहम्) (तु) ही (एषाम्) पूर्वोक्तानाम् (भूमानम्) बहुभावम् (बिभ्रत्) धारयन् सन् (औदुम्बरम्) संहतिस्वीकर्तारम् (मणिम्) प्रशस्तं परमात्मानम् ॥