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क॑री॒षिणीं॒ फल॑वतीं स्व॒धामिरां॑ च नो गृ॒हे। औदु॑म्बरस्य॒ तेज॑सा धा॒ता पु॒ष्टिं द॑धातु मे ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

करीषिणीम्। फलऽवतीम्। स्वधाम्। इराम्। च। नः। गृहे। औदुम्बरस्य। तेजसा। धाता। पुष्टिम्। दधातु। मे ॥३१.३॥

अथर्ववेद » काण्ड:19» सूक्त:31» पर्यायः:0» मन्त्र:3


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पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी

ऐश्वर्य की प्राप्ति का उपदेश।

पदार्थान्वयभाषाः - (नः) हमारे (गृहे) घर में (औदुम्बरस्य) संघटन चाहनेवाले [परमेश्वर] के (तेजसा) तेज से (करीषिणीम्) बहुत गोबरवाली, (फलवतीम्) बहुत फलवाली, (स्वधाम्) बहुत अन्नवाली (च) और (इराम्) बहुत भूमिवाली (पुष्टिम्) वृद्धि को (धाता) पोषक [गृहपति] (मे) मुझे (दधातु) देवे ॥३॥
भावार्थभाषाः - गृहपति परमेश्वर के अनुग्रह और अपने पुरुषार्थ से कुटुम्ब पालने को बहुत गौएँ दूध घृत आदि के लिये, आरामवाटिका फल आदि के लिये, अन्न-भोजनादि के लिये और भूमि राज्य खेती आदि के लिये रक्खे ॥३॥
टिप्पणी: ३−(करीषिणीम्) अ०३।१४।३। बहुना करीषेण गोमयेन युक्ताम् (फलवतीम्) बहुफलयुक्ताम् (स्वधाम्) स्वधा-अर्शआद्यच्। बह्वन्नवतीम् (इराम्) अर्शआद्यच्। बहुभूमियुक्ताम् (च) (नः) अस्माकम् (गृहे) निवासे (औदुम्बरस्य) म०१। संहतिस्वीकारकस्य (तेजसा) प्रतापेन (धाता) पोषको गृहपतिः (पुष्टिम्) पोषणम् (दधातु) ददातु (मे) मह्यम् ॥