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पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी
सेनापति के लक्षणों का उपदेश।
पदार्थान्वयभाषाः - (यत्) जिस [ईश्वरसामर्थ्य] से (समुद्रः) अन्तरिक्ष और (पर्जन्यः) बादल (विद्युता सह) बिजुली के साथ (अभ्यक्रन्दत्) सब ओर गरजा है। (ततः) उसी [सामर्थ्य] से (हिरण्ययः) झलकता हुआ (बिन्दुः) बूँद [शुद्ध मेह का जल] और (ततः) उसी [सामर्थ्य] से (दर्भः) दर्भ [शत्रुविदारक सेनापति] (अजायत) प्रकट हुआ है ॥५॥
भावार्थभाषाः - जैसे परमेश्वर के सामर्थ्य से आकाश में बिजुली और बादल गरज कर वृष्टि करके उपकार करते हैं, वैसे ही उसी जगदीश्वर के नियम से शूर सेनापति उत्तम शिक्षा और उत्तम संस्कारों के द्वारा संसार में उपकार करके यशस्वी होता है ॥५॥
टिप्पणी: ५−(यत्) यस्मात्परमेश्वरसामर्थ्यात् (समुद्रः) अन्तरिक्षम् (अभ्यक्रन्दत्) अभितः स्तननं गर्जनमकार्षीत् (पर्जन्यः) मेघः (विद्युता) अशन्या (सह) (ततः) तस्मात् सामर्थ्यात् (हिरण्ययः) तेजोमयः (बिन्दुः) वृष्टिबिन्दुः (ततः) तस्मात् सामर्थ्यात् (दर्भः) शत्रुविदारकः सेनापतिः (अजायत) प्रादुरभवत् ॥