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पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी
सेनापति के लक्षणों का उपदेश।
पदार्थान्वयभाषाः - (दर्भ) हे दर्भ ! [शत्रुविदारक सेनापति] (ते) तेरे (वर्माणि) कवच (शतम्) सौ और (ते) तेरे (वीर्याणि) वीर कर्म (सहस्रम्) सहस्र हैं। (तम्) उस (त्वाम्) तुझे (विश्वे) सब (देवाः) विद्वानों ने (अस्मै) इस [पुरुष] को (जरसे) स्तुति के लिये और (भर्तवै) पालन करने के लिये (अदुः) दिया है ॥२॥
भावार्थभाषाः - जो सेनापति अनेक प्रकार से अपनी और प्रजा की रक्षा कर सके, विद्वान् लोग प्रधान पुरुष के सामने उस महान् पुरुष का आदर करें ॥२॥
टिप्पणी: २−(शतम्) असंख्यानि (ते) तव (दर्भ) हे शत्रुविदारक सेनापते (वर्माणि) कवचानि (सहस्रम्) अपरिमितानि (वीर्याणि) वीरकर्माणि (ते) (तम्) तादृशम् (अस्मै) प्रधानाय (विश्वे) सर्वे (त्वाम्) शूरम् (देवाः) विद्वांसः (जरसे) स्तुतये (भर्तवै) तवैप्रत्ययः। भरणाय। पोषणाय (अदुः) दतवन्तः ॥