वांछित मन्त्र चुनें

प्रा॒णेना॒ग्निं सं सृ॑जति॒ वातः॑ प्रा॒णेन॒ संहि॑तः। प्रा॒णेन॑ वि॒श्वतो॑मुखं॒ सूर्यं॑ दे॒वा अ॑जनयन् ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

प्राणेन। अग्निम्। सम्। सृजति। वातः। प्राणेन। सम्ऽहितः। प्राणेन। विश्वतःऽमुखम्। सूर्यम्। देवाः। अजनयन् ॥२७.७॥

अथर्ववेद » काण्ड:19» सूक्त:27» पर्यायः:0» मन्त्र:7


बार पढ़ा गया

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी

आशीर्वाद देने का उपदेश।

पदार्थान्वयभाषाः - वह [परमात्मा] (प्राणेन) प्राण [जीवनसामर्थ्य] के साथ (अग्निम्) अग्नि को (सं सृजति) संयुक्त करता है, (वातः) वायु (प्राणेन) प्राण [जीवनसामर्थ्य] के साथ (संहितः) मिला हुआ है। (प्राणेन) प्राण [जीवनसामर्थ्य] के साथ (विश्वतोमुखम्) सब ओर मुखवाले (सूर्यम्) सूर्य को (देवाः) दिव्य नियमों ने (अजनयन्) उत्पन्न किया है ॥७॥
भावार्थभाषाः - जैसे परमात्मा ने अग्नि आदि में प्राण वा जीवनसामर्थ्य देकर उपयोगी बनाया है, वैसे ही मनुष्य अपनी आत्मिक और शारीरिक शक्तियों द्वारा जीवन को उपयोगी बनावें ॥७॥
टिप्पणी: ७−(प्राणेन) जीवनसामर्थ्येन (अग्निम्) पावकम् (सं सृजति) संयोजयति स परमेश्वरः (वातः) वायुः (प्राणेन) जीवनसामर्थ्येन (संहितः) संधीकृतः (प्राणेन) (विश्वतोमुखम्) सर्वतोमुखमिव द्रष्टारम् (सूर्यम्) (देवाः) दिव्यनियमाः (अजनयन्) उदपादयन् ॥