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पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी
परमात्मा और जीवात्मा के स्वरूप का उपदेश।
पदार्थान्वयभाषाः - (एकम्) एक वस्तु (बालात्) बाल [केश] से (अणीयस्कम्) अधिक सूक्ष्म है, (उत) और (एकम्) एक वस्तु (नेव) नहीं भी (दृश्यते) दीखती है। (ततः) उस [बड़ी सूक्ष्म वस्तु] से (परिष्वजीयसी) अधिक चिपटनेवाला (सा) वह (देवता) देवता [परमेश्वर] (मम प्रिया) मेरा प्रिय है ॥२५॥
भावार्थभाषाः - परमात्मा सूक्ष्म से भी सूक्ष्म होकर प्राणियों के भीतर रमकर उनको बल देता है, इसी से वह सब प्राणियों का प्रिय है ॥२५॥
टिप्पणी: २५−(बालात्) केशात् (एकम्) वस्तुमात्रम् (अणीयस्कम्) अनुतरम् (उत) अपि (एकम्) (नेव) इव अवधारणे। नैव (दृश्यते) अवलोक्यते (ततः) तस्मात् सूक्ष्मवस्तुसकाशात् (परिष्वजीयसी) परि+ष्वञ्ज आलिङ्गने−तृच्, ईयसुन्, ङीप्। तुरिष्ठेमेयःसु। पा० ६।४।१५४। तृचो लोपः। अधिकतरा परिष्वङ्क्त्री। आलिङ्गनशीला (देवता) देवः परमात्मा (सा) (मम) (प्रिया) हिता ॥