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यथा॒ बीज॑मु॒र्वरा॑यां कृ॒ष्टे फाले॑न॒ रोह॑ति। ए॒वा मयि॑ प्र॒जा प॒शवोऽन्न॑मन्नं॒ वि रो॑हतु ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

यथा । बीजम् । उर्वरायाम् । कृष्टे । फालेन । रोहति । एव । मयि । प्रऽजा । पशव: । अन्नम्ऽअन्नम् । वि । रोहतु ॥६.३३॥

अथर्ववेद » काण्ड:10» सूक्त:6» पर्यायः:0» मन्त्र:33


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पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी

सब कामनाओं की सिद्धि का उपदेश।

पदार्थान्वयभाषाः - (यथा) जैसे (बीजम्) बीज (उर्वरायाम्) उपजाऊ धरती में (फालेन) फाल [हल की कील] से (कृष्टे) जोते हुए [खेत] में (रोहति) उपजता है, (एव) वैसे ही (मयि) मुझ में (प्रजा) प्रजा [सन्तान आदि], (पशवः) पशु [गौ घोड़ा आदि] और (अन्नमन्नम्) अन्न के ऊपर अन्न (वि) विविध प्रकार (रोहतु) उत्पन्न होवे ॥३३॥
भावार्थभाषाः - यह बात प्रसिद्ध है कि उत्तम अन्न उपजाऊ धरती में क्रियाविशेष द्वारा बोये बीज से उत्तम अन्न आदि उत्पन्न होते हैं, वैसे ही सुशिक्षित गुणी पुरुषों के सुविचारित कर्म से बड़े-बड़े उपकारी लाभ होते हैं ॥३३॥
टिप्पणी: ३३−(यथा) येन प्रकारेण (बीजम्) अ० ३।१७।२। उत्पत्तिकारणम् (उर्वरायाम्) उरु−ऋ गतौ-अच्, टाप्। शस्याढ्यायां भूमौ (कृष्टे) विलिखिते क्षेत्रे (फालेन) फल विदारणे-घञ्। लाङ्गलमुखस्येन लौहेन (रोहति) उत्पद्यते (एव) तथा (मयि) (प्रजा) सन्तानः (पशवः) गवाश्वादयः (अन्नमन्नम्) बहुपरिमाणमन्नम् (वि) विविधम् (रोहतु) जायताम् ॥