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पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी
सब कामनाओं की सिद्धि का उपदेश।
पदार्थान्वयभाषाः - (ब्रह्मणा) वेद द्वारा (तेजसा सह) प्रकाश के साथ (मे) अपने लिये (शिवम्) शिव [मङ्गलकारी परमात्मा] को (प्रति मुञ्चामि) मैं स्वीकार करता हूँ। (असपत्नः) शत्रुरहित, (सपत्नहा) शत्रुनाशक [परमेश्वर] ने (मे) मेरे (सपत्नान्) शत्रुओं को (अधरान्) नीचे (अकः) कर दिया है ॥३०॥
भावार्थभाषाः - वेद द्वारा परमात्मा के विचार से जिनकी बुद्धि प्रकाशमयी हो जाती है, वे अपने शत्रुओं को नाश करके सुख पाते हैं ॥३०॥
टिप्पणी: ३०−(ब्रह्मणा) वेदद्वारा (तेजसा) प्रकाशेन सह (प्रति मुञ्चामि) स्वीकरोमि (मे) मह्यम्। आत्मने (शिवम्) मङ्गलप्रदं परमात्मानम् (असपत्नः) शत्रुनाशकः (सपत्नान्) शत्रून् (मे) मम (अधरान्) नीचान् (अकः) अ० १।८।१। अकार्षीत्। कृतवान् ॥