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पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी
सब कामनाओं की सिद्धि का उपदेश।
पदार्थान्वयभाषाः - (यम्) जिस (असुरक्षितिम्) असुरनाशक [वैदिक नियम] को (बृहस्पतिः) बृहस्पति [बड़े ब्रह्माण्डों के स्वामी परमेश्वर] ने (देवेभ्यः) विजयी लोगों के लिये (अबध्नात्) बाँधा है। (सः अयम्) वही (मणिः) मणि [प्रशंसनीय वैदिक नियम] (मा) मुझे (रसेन) पराक्रम और (वर्चसा सह) प्रताप के साथ (आ अगमत्) प्राप्त हुआ ॥२२॥
भावार्थभाषाः - परमात्मा के बाँधे नियम पर चल कर सब मनुष्य बल और कीर्ति बढ़ावें ॥२२॥
टिप्पणी: २२−(यम्) (अबध्नात्) बद्धवान्। नियोजितवान्। (बृहस्पतिः) बृहतां ब्रह्माण्डानां स्वामी (देवेभ्यः) विजयिभ्यः (असुरक्षितिम्) दुष्टनाशकम् (सः) (मा) माम् (अयम्) एव (मणिः) (आगमत्) प्राप्तवान् (रसेन) पराक्रमेण (सह) (वर्चसा) प्रतापेन ॥